Tuesday, June 3, 2025

हरसिंगार

 पेशानी पर सूरज सजा , 

देखो खिल गया हरसिंगार 

रंग-ओ-ख़ुशबुओं से इतराए 

मुस्कुराए तो हरदिल गुलज़ार 

मर्ज़

आसां इतना भी नहीं है इस मर्ज़ से शफा पाना 

ना ये वो मर्ज़ है जो बस इक बार होता है

ना ये वो नासमझी है जो समझदारों से नहीं होती 

ये जो मोहब्बत है ना बस हो जाती है 

दुआ

 आग़ाज़ ख़्वाबों का हुआ बहुत से 

पँख फड़फड़ाये उड़ने को पहली बार 

विदा करती गीली आँखें देर तक

दुआ में हाथ उठाती  रही बार-बार